अपनी उलझन का सघन वन,
सबके होते हुए भी पथ निर्जन ।
शून्य सम्मोहन वश जैसे बेबस,
बस काष्ठवत मन ढो रहा जीवन ।
सहसा सुना कहीं भारी कोलाहल ,
ढोल बजाता हुआ जन समूह मगन !
और उनके बीच रथारुढ़ बप्पा स्वयं,
कोटि सूर्य समान शुभंकर आगमन ।
जाने कितनी ही बार मेरा हुआ मन,
पिता की विशाल गोद में सिर रख ,
सो जाऊं निश्चिंत भूल कर सब द्वंद
मिले श्री चरणों में शरण अवलंबन ।
इतनी दूर से भी देख, गए सब जान,
ध्यान रख मेरी सदा तुझ पर है नज़र !
करुणामयी दृष्टि ने हर लिए सब विघ्न,
टूटी तंद्रा, सजग चेतना, दृढ़ मनोबल ।
नमस्ते namaste
शब्दों में बुने भाव भले लगते हैं । स्याही में घुले संकल्प बल देते हैं ।
शुक्रवार, 22 अगस्त 2025
शुभंकर आगमन
शुक्रवार, 15 अगस्त 2025
भारत का स्वाभिमान
भारत का उन्नत हो भाल,
करना है बस वही काम !
अपने बल पर जीतें संग्राम
बाध्य करें हम युद्ध विराम !
रहें सीखते सब अविराम,
पीछे ना रहे एक भी ग्राम !
काम ही है अपना भगवान !
सब मिलकर दें इसे अंजाम !
कौशल ही बल है यह जान,
हर पथ पर चल सीना तान !
हम ही से भारत की पहचान !
हम ही भारत का स्वाभिमान !
बुधवार, 13 अगस्त 2025
झंडा ऊँचा रहे हमारा
बच्चों के नन्हे हाथों में तिरंगा
सच लगता है बहुत ही भला !
ये ही तो सदा लहराएंगे ऊँचा
अपने दम पर भारत का झंडा !
सिद्ध होगी तब सच्ची स्वतंत्रता
जब हिंदुस्तान का हर एक बच्चा
सङकों पर बेचता ना भटकेगा
गर्व से स्कूल में फहराएगा तिरंगा !
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