बच्चे किताबें पढ़ें,अच्छी किताबें गुनें,नई-नई बातें सीखें।कल्पना के पर तोलें,सारा आकाश नापें,नभ से धरती को देखें ।खेलें-कूदें, चोट से न डरें,अनुभव गुणा-भाग करें,मिल कर सवाल हल करें ।इस छोटी-सी दुनिया मेंबङे जिगर वाले ख़्वाब देखेंहौसले बुलंद करें बङों के..पहाङ,नदी, वृक्ष की छाँव बनें..जिस धुरी पर टिकी है पृथ्वीउसी पेंसिल के भरोसे है दुनिया ।
नमस्ते namaste
शब्दों में बुने भाव भले लगते हैं । स्याही में घुले संकल्प बल देते हैं ।
शनिवार, 15 नवंबर 2025
पेंसिल
शुक्रवार, 7 नवंबर 2025
उन बातों का क्या ?
उन बातों का क्या ?
जो तुमने कहनी चाहीं,
जो हमने सुननी चाहीं,
पर ऐसा हो ना पाया ।
क्या शब्दों में ही
बात कही जा सकती है ?
अभिव्यक्ति का और कोई
माध्यम नहीं है ?
सुना है मौन की भी
भाषा होती है ।
बिना कुछ कहे भी
भावना व्यक्त होती है ।
सृष्टि का प्रत्येक कण
हर पल कुछ बोलता है ।
अस्तित्व में होना ही
उसका मुखर होना है ।
ऐसी भी आती है घङी
ईश सम्मुख होता है,
मन में होती है प्रार्थना
मुरली वाला सुनता है ।
मोहन मन में बसता है ।
छल से भीतर आता है ।
माखनचोर कहलाता है ।
चित्त चुरा के ले जाता है ।
बुधवार, 5 नवंबर 2025
झिलमिल हिलमिल दीपशिखा
मतवाला जो निकल पङा है
सुख-दुख बाँटने जग भर का,
कभी कम न हो उसके पथ का
आलोक मार्ग दिखाने वाला !
सुख-दुख का जब हो प्रतिदान
मन रखना एक बात का ध्यान,
बस दीप अनगिनत बालते जाना
ज्योत सद्भाव की जलाए रखना ।
जगमग जगमग जब दीपमालिका
झिलमिल हिलमिल करे उजाला,
सूरज, चंदा, तारे, मिट्टी का दिया
ज्योतिर्मय कर दें हर निर्जन कोना ।
झुलसाती लपट बन गई दीपशिखा
मेटने तम अज्ञान, स्पृहा, विषाद का ,
छोटे-छोटे दियों की सजा अल्पना
पर्व प्रकाश का मना रहा मतवाला !